लोग प्रतिदिन रेस्टोरेंट, Take away और उत्सवों में भोजन और स्नैक्स खाते हैं। किंतु अब ये प्रश्न विकराल हो चुका है कि इनमे भोजन बनाते समय स्वच्छता का कितना ध्यान रखा जाता है। यदि इन सब की रसोई में जाकर देखा जाए तो कदाचित कुछ ही स्थानों पर लोग भोजन करना पसंद करेंगे।
इंस्टाग्राम पर स्वस्थ भोजन पर जागरूकता लाने वाली फिटनेस कोच और न्यूट्रीशनिस्ट उर्वशी अग्रवाल निरंतर इस पर वीडियो पोस्ट करती हैं। उनकी नई पोस्ट मंचूरियन बनाने वालों की पोल खोलती है कि कैसे अधिक मात्रा में मंचूरियन बनाने वाले स्वच्छता को ही भूल जाते हैं और अत्यंत असभ्य अस्वस्थ रूप से इन्हे बनाते हैं। खाने वाले ये सब देख लें तो जीवन में कभी बाहर का खाना न खाएं।
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उर्वशी अग्रवाल लोगो को सदा घर का खाना खाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि वह प्रेम से स्वच्छता से बनाया जाता है।
(धनंजय सिंह राजपूत)
प्राकृतिक उत्पादों पर जनसाधारण में जागृति लाने वाले बस्ती, उत्तरप्रदेश के धनंजय सिंह राजपूत बताते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार भोजन बनाने वाले का भाव भोजन में आता है। घर में वास्तव भोजन नहीं बनाया जाता, प्रसाद बनाया जाता है जो पहले ईश्वर को भोग लगाया जाता है। इसलिए भोजन बनाने वाला प्रेम से भोजन नहीं, प्रसाद बनाता है। किंतु बाहर के खाने में ये भाव नहीं होता। इसलिए बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए।
हिंदू मैनिफेस्टो के जितेंद्र खुराना ने कहा कि वर्तमान में बाहर खाने का प्रचलन बड़ रहा है जिससे परिवार व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। घर का खाना घर में सब बैठ कर करते हैं तो परिवार व्यवस्था सशक्त होती है और आपस में प्रेम बढ़ता है। परिवार में एक दूसरे का ध्यान रखने की प्रवृत्ति भी बढ़ती है। आपस के छोटे मोटे झगड़े भोजन प्रसाद करते समय ही सुलट जाते हैं। इसलिए घर में एक साथ बैठ कर भोजन करने का महत्व बहुत अधिक है। घर का भोजन ही वास्तव में भोजन है जो आत्मा को भी तृप्त करता है, बाहर का भोजन तो बस मुंह का स्वाद है और पेट ठूंसने का माध्यम है।